एक बार पुनः संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय गणराज्य को प्रतीकात्मक रूप में ही सही कूटनीतिक व सामरिक पराजय का मुंह देखना पड़ा । हमारी आन बान शान का प्रतीक तिरंगा की लहराव में जो धुनक होनी चाहिए, वो नहीं दिखी । आज यदि भारत सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य होता और भारत के पास वीटो पावर होता तो हमारे तिरंगा का मान कुछ और ही होता। भारतीय गणराज्य के माननीय नागरिक के रूप में मैंने कई बार आपसे माननीय विदेश मंत्री जी से और संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव जी से मांग की कि भारत को सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य प्रदान की जाए और हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया जाए । कहने में थोड़ी हिचक लग रही है किंतु यही स्याह सच है कि राष्ट्रहित के इस मांग को आपने जितनी गंभीरता से लेना चाहिए, नहीं लिया । यदि आज भारत सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य होता तो भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न जैश-ए- मोहम्मद के आतंकवादी अब्दुल रऊफ अजहर को संयुक्त राष्ट्र संघ वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया होता और उसकी सारी संपत्ति जप्त कर ली गई होती । इस कठोर कार्रवाई के बाद कोई आतंकवादी भारत की पवित्र भूमि की तरफ आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता । आजादी के 75 वर्ष में भी भारत सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य नहीं है । वर्तमान में भारत सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य है जो 31 दिसंबर 2022 तक रहेगा । हमारे पास 4 महीने हैं जिसमें हम भारत को सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए निर्णायक अभियान चला सकते हैं । देश के अंदर देश की जनता चलाये और देश के बाहर भारत सरकार और विदेश में रह रहे भारतवंशी इस अभियान के प्रतिबद्ध, प्रबल, प्रखर व प्रगतिशील वाहक बनें ।
कतरा कतरा शबनम गिन क्या होगा,
दरियाओं की दावेदारी किया करें