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अब कौन कहेगा, ये मुदित मतवाला सुन दीपक दूर तक जाएगा तेरा उजाला मारीशस विश्व हिंदी सम्मेलन चल रहा था। दुनिया भर के भाषाविद व हिंदी सेवी पोर्ट लुइस में एकत्र थे, उनमें साहित्कार एवं तत्कालीन राज्यपाल गोआ मृदुला दीदी भी थीं और मैं भी। मैं हिंदी के पक्ष में लिखा पर्चा सबको बांटता और फ़ोटो खिंचवाता । पर्चे बांटना व जनमत बनाना मेरा राजनीतिक कर्म है । फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष व गीतकार प्रसून जोशी से बतकही कर जैसे आगे बढ़ा पीछे से अति अपनीय व मृदुल आवाज आई- सुन दीपक ए मुदित मतवाला' मैंने मुड़ कर देखा तो पाया यह स्वर यथा नाम तथा गुण मृदुला सिन्हा जी का था। उन्होंने अधिकार पूर्वक कहा कि मुझे पम्पलेट नहीं दोगे, मैंने संकुचाते हुए कहा कि आपको अलग से मिल के देना चाहता था, ऐसे देना ठीक नहीं , हम भारत की एक अग्रगण्य विभूति एवं कलमकारों की आदर्श हैं ।उनका उत्तर रेखांकित करने योग्य है " बातें बनाना सीख गया, मैं तेरे काम से बहुत प्रसन्न हूँ, तू वह काम कर रहा है जो हमें करना चाहिए । मैंने जैसे ही पर्चा उन्हें देने के लिए निकाला, उन्होंने अपने पर्स से मेरा पम्पलेट निकाला और बोला कि यह मुझे मेरे प्रोटोकॉल अधिकारी से मिला और मैंने उनसे लेकर रख लिया। उन्होंने शाम को मुझे चाय पर बुलाया और हिंदी को लेकर काफी बातें की । मुझसे उन्होंने एक बात कही " जानते हो दीपक, हम दोनों का घराना व कुलदेवता एक है । मैं चकरा गय " वो कैसे" उन्होंने रहस्यमयी मुस्कान की पवित्र आभा बिखेरते हुए कहा," मैं लोहिया के संगीद्वय दिनकर व रेणु की शिष्या हूँ औऱ तुम लोहिया के साथी द्वय जार्ज व जनेश्वर के शिष्य हो । मैं समझ गया कि दीदी मेरा हौसला बढ़ाने के लिए किस तरह मुझ अकिंचन को अपने समकक्ष खड़ा कर रही हैं । जाते जाते पूछा कि कुछ पैसे हैं, मैंने कहा कि मेरे पास नहीं हैं, किसी से मांग कर दे सकता हूँ । मैंने सोचा हो सकता हो दीदी के पास मॉरीशस की करेंसी न हो, अभी मैं सोच ही रहा था कि दीदी ने 200 डॉलर निकाल कर मेरे हाथ पर रख दिया । मेरे लाख मना करने पर भी नहीं मानीं, पैसे पॉकेट में रखवा ही दिए । यह जरूर कहा कि मुझसे ज्यादा लोहियावादियों को कौन जानेगा, फक्कड़ होते हैं । मृदुला जी का जाना खल रहा है, एक ईमानदार वैचारिक नेत्री, लेखिका, साहित्यसेवी उनके न जाने कितने रूप थे और वे हर रूप में अलौकिक थीं । जिस लोक की थीं, उस लोक चलीं गई,