यह सर्वविदित तथ्य है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के प्रमुख शिवपाल सिंह यादव अपने वय व कद के सभी नेताओं से अलग व विशिष्ट हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में दल बनाकर और लगातार सक्रियता से चलाकर उन्होंने साबित कर दिया कि उत्तर प्रदेश में उनकी वैयक्तिक पकड़ सर्वाधिक है। जन-मानस में श्री शिवपाल की जो पकड़ है वो किसी भी प्रांतीय नेता के मुकाबले अधिक है। इतने कम समय में प्रसपा को उन्होंने अपनी सांगठनिक क्षमता व भागीरथ प्रयासों से देश के सबसे बड़े सूबे उ.प्र. के गांव गांव तक पहुॅचा दिया। हर जिले में दल की सशक्त इकाइयाँ खडी कर दी। उ.प्र. के गत तीन आम चुनाव के परिणाम साक्षी हंै कि बिना शिवपाल यादव के जो भी गठबंधन बने भारतीय जनता पार्टी को पराजित नहीं कर सके। उ.प्र. के कई बार मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव के इस बयान को नकारा नहीं जा सकता कि बिना शिवपाल के जीत सम्भव नहीं। जिस तरह लोहिया ने साठ के दशक में गैर कांग्रेसवाद का झण्डा बुलंद किया था और देश में परिवर्तन की लहर पैदा की थी, उसी तर्ज पर लोकतंत्र की मजबूती व सार्थक बदलाव के लिए शिवपाल गैर भाजपावाद का नारा दे रहे हैं।

जिस वर्ष 1955 में राममनोहर लोहिया ने अपनी सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया था, उसी वर्ष बसंत पंचमी के पवित्र दिन लोहिया के शिष्य श्री मुलायम के अनुज तथा श्री सुधर सिंह व श्रीमती मूर्मि देवी के पुत्र के रूप में शिवपाल जी का जन्म हुआ। शिवपाल जी ने राजनीति की व्यावहारिक दीक्षा अग्रज मुलायम सिंह के साथ साथ रवि राय, छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र से ली। लोहिया व चरण सिंह को आदर्श मानने वाले शिवपाल सिंह कई बार कैबिनेट मंत्री व नेता प्रतिपक्ष जैसे बड़े पदों पर पदों के अहंकार से स्वयं को बचाते हुए रह चुके हंै।

वे जब सरकार में होते हैं तो रचनात्मक कार्याे द्वारा जनता की सेवा करते हैं। किसानों को न्याय दिलाने के लिए चैधरी चरण सिंह की भाँति राजस्व संहिता में परिवर्तन करते हैं। खेती के लिए नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधा निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं। मंडियों को सड़कों द्वारा गांवों से जोड़ते हैं और मंडियों में व्याप्त भ्रष्टाचार को अभियान चलाकर समाप्त करने का सद्प्रयास करते हैं ताकि किसानों को उनकी उपज पर लाभकारी मूल्य मिले। जब वे विपक्ष में होते हैं तो सरकार के विरुद्ध आम जनता के दुःख-दर्द के सशक्त स्वर होते हैं। शिवपाल जी अपने कार्यकर्ताओं के साथ चट्टान की भांति खड़े रहने के लिए जाने जाते हैं। छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र उन्हें अक्सर ‘‘अपना गरीबों और कार्यकर्ताओं का आदमी’’ कहा करते थे। अपने छोटे से छोटे कार्यकर्ता व गरीब से गरीब जन के लिए शिवपाल जी बड़े से बड़े व्यक्ति से टकराने से कभी हिचके नहीं। अपनी इस प्रवृत्ति के कारण ही शिवपाल जी के पीछे गरीबों व कार्यकर्ताओं का हुजूम सदैव दिखता है। हमेशा लोकजीवन में त्याग व संघर्ष की खुली वकालत करने वाले शिवपाल यादव जी का कद 04 दिसम्बर, 2010 को उस दिन बहुगुणित हो गया, जब उन्होंने नेता प्रतिपक्ष जैसे बड़े लाल बत्तीधारी पद को एक झटके में छोड़ने का एलान कर दिया। बतौर नेता प्रतिपक्ष भी उन्होंने लोकबन्ध राजनारायण व नेताजी मुलायम की परम्परा की चमक को बढ़ाया। मुलायम सिंह जी ने बार-बार सार्वजनिक रूप से कहा है कि शिवपाल के संघर्ष के कारण ही बहुमत की सरकार बनी थी। नितान्त चुनावी राजनीति से परे भी शिवपाल यादव का कई भूमिकाओं का निर्वहन पूरी निष्ठा से किया है। भाई के रूप में लोग उन्हें नेताजी के लक्ष्मण की संज्ञा देते ही हैं। नेताजी के हर संघर्ष में वे छाया की भांति सदैव खड़े रहे। कभी सियासी नफा-नुकसान की परवाह नहीं की। नेताजी ने सार्वजनिक बयानों में कई बार कहा है कि जब भी मौका मिला है शिवपाल ने उनके, कार्यकर्ताओं व समाजवादी आन्दोलन के लिए जान की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटे। शिवपाल सिंह हिन्दी के बड़े पक्षधर हैं। साहित्य के प्रति उनका प्रेम जग जाहिर है। वे हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए व्यापक वैश्विक अभियान चला रहे हैं। इस सन्दर्भ में माॅरीशस के प्रधानमंत्री रहे पाॅल बेराॅन्जे से लेकर नेपाल के सांसद अभिषेक प्रताप शाह तक के अनेक नेताओं से संवाद व सम्पर्क कर हिन्दी को मजबूत किया है। यूएनओ में अनवरत खतो-किताबत के परिणामस्वरूप आज संयुक्त राष्ट्र संघ सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों पर हिन्दी में सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहा है। हिन्दी व साहित्य प्रेम के कारण ही गीतों के ऋषि कहे जाने वाले गोपालदास ‘‘नीरज’’ ने शिवपाल को अपना प्रिय नेता व दोस्त कहते हुए अपनी पुस्तक ‘‘काव्यांजलि’’ समर्पित की थी। अदम गोंडवी, बाल कवि बैरागी, अजमल सुल्तानपुरी जैसे कवियों व साहित्यकारों ने भी शिवपाल जी की प्रशंसा मुक्त-हृदय से कर चुके हैं। शिवपाल हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु मारीशस, अरब देशों के अतिरिक्त तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे गैर-हिन्दी भाषी प्रान्तों की भी प्रवासीय यात्रायें व हिन्दी सेवाओं से संवाद करते रहे हंै। यद्यपि शिवपाल सिंह की छवि देशज चुनावी राजनीतिज्ञ की अधिक है तथापि वैश्विक व सैद्धान्तिक सवालों से कभी भी शिवपाल सिंह यादव ने मुँह नहीं मोड़ा। चीन की विस्तारवादी नीतियों के वे मुखर आलोचक रहे हैं। तिब्बत की आजादी की लड़ाई के वे एक अंग बन चुके हैं। तिब्बत के वरिष्ठ सांसद दाबा क्षीरिंग जार्ज फर्नाण्डीज के बाद शिवपाल सिंह को ही तिब्बत का सबसे बड़ा हितैषी मानते हैं। जब भी तिब्बत के अहिंसक आन्दोलनकारियों का शिष्टमंडल लखनऊ आता है, शिवपाल सिंह से मिले बिना वापस नहीं लौटता। शिवपाल सिंह से मिलना उसके तिब्बत मुक्ति संग्राम का एक हिस्सा होता है। आजादी की लड़ाई में रेखांकित करने योग्य सहयोग व संबल देने के कारण ही तिब्बती प्रतिनिधि शिवपाल जी को मान-पत्र दे कर सम्मानित कर चुके हैं। शिवपाल यादव का स्पष्ट मानना है कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इतिहास का जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के अमर सेनानियों यथा चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी, लोहिया, जय प्रकाश नारायण, सदृश राष्ट्रनायकों से लेकर छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र, कर्पूरी ठाकुर सरीखे समाजवादी आन्दोलन व वैचारिकी से जुड़े महापुरुषों की जयन्ती व पुण्यतिथि पर संगोष्ठियों व कार्यशालाओं का आयोजन करते रहते हैं। बाबू भगवती सिंह, लोहियावादी राजनाथ शर्मा, के0 विक्रम राव सदृश विचारवानों का उद्बोधन कराते हैं। उनके इन कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण सहयोगी होने का मुझे सौभाग्य प्राप्त है। इस तरह की की रचनाधर्मिता वाले कार्यक्रमों में इतनी सक्रिय सहभागिता रखने वाला शिवपाल के अतिरिक्त कोई दूसरा नेता नहीं दिखता। शिवपाल की वैचारिक प्रतिबद्धता स्पष्ट है। वे समाजवाद के प्रगतिशील पक्ष के प्रतिबद्ध पोषक हैं। वे लोहिया की तरह हिन्दुत्व के उदार, उदात्त व समावेशी स्वरूप में गहरी आस्था रखते हैं। शायद ही कोई साधु, महात्मा हो जो शिवपाल से सीधा न जुड़ा हो। वे राम, कृष्ण, शिव, राष्ट्रवाद, समाजवाद जैसे आदर्शों का वोट की राजनीति के लिए दुरुपयोग के हमेशा खिलाफ रहे हैं। उन्होंने चुनावी राजनीति में कभी भी इन पवित्र नामों का इस्तेमाल नहीं किया और न ही अपने साथियों को करने दिया। भारत रत्न व भारत के 11वें राष्ट्रपति अब्दुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम द्वारा सहकारिता के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए 20 नवम्बर, 2008 को सहकारिता-रत्न से सम्मानित शिवपाल जी उत्तर प्रदेश विधानसभा के अनमोल रत्न व एक तरीके से पर्याय बन चुके हैं। शिवपाल जी विधानसभा के लगातार 25 वर्ष से सदस्य हैं। यह वर्ष उनके विधायी लोकजीवन का रजत-वर्ष है। सदन में वे समाजवादी सरकार के संकटमोचक माने जाते रहे है। सभी जानते हैं कि बतौर नेता प्रतिपक्ष उन्होंने लोकबन्धु राजनारायण व मुलायम सिंह की विरासत को आगे बढ़ाया है। उनके नेतृत्व में 2007 से 2012 के दौरान बसपा की सरकार के विरुद्ध लगातार संघर्ष हुआ। कई बार तो शिवपाल जी की अगुवाई में विपक्ष के सभी विधायक दिन तो दिन रात में भी धरने पर बैठे दिखे। जब तक शिवपाल नेता प्रतिपक्ष रहे विपक्ष बहुमत की सरकार पर भारी दिखता था। शिवपाल जी को बतौर राजस्व मंत्री किसानों को न्याय दिलाने के लिए राजस्व संहिता में संशाधन करने के लिए भी हमेशा प्रशंसा की जाएगी। यह करके उन्होंने प्रदेश की कृषि को सामंती दासता से मुक्त कराने का ऐतिहासिक कार्य किया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में आहुत दो दिवसीय विशेष सत्र में शिवपाल जी को संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक मान दिलाने का प्रश्न उठाने के लिए भी सदैव यादव साधुवाद दिया जायेगा। जब शिवपाल जी ने हिन्दी का सवाल उठाया तो सदन में बैठे सभी सदसयों ने उनका करतल ध्वनि से स्वागत किया। कई वरिष्ठ सदस्य सोच रहे थे कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का इतना बड़ा काम जो यह प्रगतिशील समाजवादी कर रहा है, काश, उनके हाथों होता। लेकिन नियति ने हिन्दी सेवा का शुभ कार्य शिवपाल जी हाथों ही होना नियत किया था।

नेताजी मुलायम सिंह 1993 में जसवंत नगर से मात्र 1161 वोटों से जीते थे, 1996 में वे रक्षामंत्री बने। प्रदेश में मायावती जी का शासन जा चुका था। सम्भवतः राष्ट्रपति शासन आरोपित था। नेताजी की जीत का इतना कम अन्तर चिंताजनक था। नेताजी की जगह जसवंत नगर से किसे लड़ाया जाय। यह सवाल समाजवादियों के सामने थे। तो सिर्फ एक नाम उभरा वह शिवपाल जी का था। शिवपाल जी 1996 में 11 हजार मतों से जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे। यह जीत का अन्तर बढ़ता गया। एक तरफ शिवपाल जी के अकेले के मत होते हैं, दूसरे तरफ सभी प्रत्याशियों के वोट होते हैं। कभी शिवपाल जी 54.42 फीसदी तो कभी 61.90 प्रतिशत वोट पाकर अपना ही रिकार्ड बनाते व तोड़ते रहे हैं। शिवपाल जी सही मायने में जसवंत नगर के यश के वंत बन चुके हैं।

शिवपाल जी के माननीय व सेकुलर मिजाज को इस बात से रेखांकित किया जा सकता है कि वे दीवाली व ईद जिस शिद्दत के साथ यतीम खाने में यतीमों के दरम्यान मनाते हैं, उसी भाव के अनाथालय में अनाथ बच्चों के साथ मनाते है।। शिवपाल उत्तर प्रदेश के सियासत के ध्रुव नक्षत्र हैं, धूमकेतु नहीं जो आए, धूम मचाए और विलुप्त हो गए। शिवपाल ने यह स्थायी यश अपनी मेहनत से अर्जित किया है। शिवपाल जी को पूरे देश में ‘‘चाचा’’ का जाता है। अब तो लोकजीवन में पंडित नेहरू के पश्चात् शिवपाल जी इस जन-खिताब के पर्याय हो गए हैं। ऐसा इसलिए हुआ कि हर युवा, गरीब, कमजोर तबका शिवपाल जी में अभिभावकत्व देखता है।

शिवपाल जी के समक्ष कई प्रस्ताव आए, लेकिन सत्ता, सम्पत्ति व सुविधाओं के लिए उन्होंने सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया, न ही झुके। इस समय शिवपाल जी यथाशक्ति लोहिया-लोकनायक जयप्रकाश चैधरी चरण सिंह की विरासत को बचाने व बढ़ाने में लगे हुए हैं। लोहिया के नक्शे-कदम पर चलते हुए ‘‘गैर-भाजपावाद’’ को मूर्तरूप में देने में लगे हुए हैं। विपक्ष के दलों को शिवपाल की संघर्ष क्षमता, सांगठित अनुभव का जनमानस में उकने पकड़ का लाभ उठाना चािहए और गैर भाजपाई दलों को एक गठबन्धन बनाकर 2022 में भाजपा की सरकार को पलटना चािहए। मुझे यह कहने में जरा भी हिचक नहीं कि आज शिवपाल के पद का वैयक्तिक पकड़ रखने वाला कोई दूसरा नेता प्रदेश में नहीं है जो कर्ताकर्ताओं व आम जनता से इतना अधिक सरोकार व सम्पर्क रखता हो। शिवपाल यादव को बिना साथ लिए भाजपा को हराना दुष्कर होगा।

(लेखक प्रसपा के मुख्य प्रवक्ता हैं)