पंडित नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम में कूदने के बाद कभी सुखों की सेज पर नहीं सोए । लखनऊ जेल की दीवारें साक्षी है कि नेहरु जेल में अपने कपड़ों के साथ पिता की मोटी शेरवानी धोया करते है । जवानी जेल और आंदोलन में बिता दी । 1937 में कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में नेताजी सुभाषचंद्र बोस को चुना और 1936 में विदेश विभाग का प्रभारी लोहिया और मजदूर प्रकोष्ठ का मुखिया लोकनायक जयप्रकाश को बनाया । उन्होंने कभी रुतबे और रुपए के लिए वकालत नहीं की । रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक, चंद्रशेखर आजाद सदृश काकोरी के नायकों का मुकदमा लड़े, आजाद हिंद फौज के जवानों की वकालत की । पूरा जीवन सादगी की अनुकृति की तरह बिताया । वैचारिक मतभेद के बावजूद श्यामा प्रसाद मुखर्जी व बाबा साहब को अपनी कैबिनेट में महत्वपूर्ण स्थान दिया । नेहरु की आलोचना बिना उन्हें पढ़े करने वाले एक बार जरूर नेहरु पढ़े,। हम नेहरु जितने महान काम नहीं कर सकते पर उनका पुण्य स्मरण करते हुए एक काम जरूर कर सकते जो वे अक्सर करते थे, एक पेड़ तो लगा ही सकते हैं ।